प्रकाश कुमार मधुबनी जी के द्वारा गद्य लेख# बिषय: लोकडाउन में शिक्षकों की स्थिति#

मेरे प्यारे साथियों आज इस अवसर पर मैं बदलाव मंच का आभार व्यक्त करता हूँ की आपने मुझे इस शिक्षक दिवस के अवसर पर अपना व्यक्तित्व साँझा करने का अवसर प्रदान किया।साथियों इस पर जितना बोला जाए उतना कम है। क्योंकि शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है। शिक्षक ही देश का भाग्यविधाता व रचनाकार होता है। किंतु जैसा कि आप सभी जानते इस वर्ष के सुरुआत से ही सम्पूर्ण विश्व महामारी करोना से जूझ रहा है। आज इसने सभी क्षेत्रों में प्रभाव जो डाला सो डाला अपितु शिक्षा व शिक्षक के लिए सर्वप्रथम चुनौती बन गया क्योकि शिक्षा तो सतत चलने वाली प्रक्रिया है जो सदैव चलती रहती है।इससे मुझसे से बेहतर कौन समझ सकता है क्योंकि इसका शिकार तो मैं भी हुआ हूँ क्योकि एक शिक्षक होने के नाते मुझे भी बहुत समस्या का सामना करना पड़ा। मेरी कोंचिंग सेंटर जो कि दिल्ली में स्थित है उसे मुझे अनिश्चितता के कारण बन्द करना पड़ा। उस विकराल घड़ी में सम्पूर्ण शिक्षकों को विभिन्न समस्याओं को सहना। पड़ा।
शिक्षक स्वभाव से ही स्वाभिमानी होता है इसलिये उसे दुसरो से उधार माँगना बिल्कुल नही अच्छा लगता जिससे उसे स्वयं के पास जो धन हो उसी से  काम चलाना होता है। अब बात करे लोकडाउन के समय तो एक निराशा का घोर प्रहार बिना बताए हुआ जिससे शिक्षक जो भी निजी स्कूलों में पढ़ाते थे उनका अचानक से सैलरी रोक दिया गया।जिस कारण से कई शिक्षक तो आर्थिक तंगी से तनाव में स्वयं चले गए। यह समय वह था जब शिक्षक का व्यवसाय सबसे पहले छीन गया। क्योकि स्कूल लगभग फरवरी से ही बन्द कर दिया गया। कई ट्यूशन सेंटर बन्द हो गए। जिसमें से मेरा भी एक था। हर तरफ केवल अफरा तफरी का माहौल था। जो वाकही दिल दहलाने वाली थी।
हर कोई लूटने में लगा था। किंतु अबतक कोई इनके बारे में नही सोच रहा है।
शिक्षा को व्यवस्थित करने के लिए मुख्य चुनौती है।जिसको व्यवस्थित करने के लिए हर शिक्षक अपना जी जान लगा देता है। आज भी शिक्षक ही है जो अपने शिष्यों के लिए स्वयं को भूल जाता है।किन्तु इनके बारे में सोचे कौन बड़ा कठिन घड़ी है इसको मैं निम्न पंक्ति के माध्यम से कहना चाहता हूँ।

शिक्षक है राष्ट्र का उद्धारक 
किन्तु उसका उद्धार कौन करे।
विस्व को बनाने वाले की हालत कठिन है।
उसके राहों में से काँट कौन हरे।।
अबतक जो देश को नया राह दिखाए।
उनके मनोबल का विकास कौन करे।।
अब भी ना जो हम बदले नजरिया।
तो शिक्षा का प्रचार प्रसार कौन करे।।

भारत में शिक्षक एक ऐसा दायित्व है जो कि सबसे पवित्र माना जाता है। किंतु कुछ सरकारी स्कूल को छोड़ दे तो सभी निजी स्कूलों के शिक्षक को ना तो इतना भरण पोषण हो पाता है कि उनके परिवार का लालन पालन हो सके किंतु कोई ध्यान तक नही देता यदि हम इन विपरीत स्थिति की बात करे तो कई शिक्षक को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा। कई खेतों में मजदूर की तरह काम करने पर मजबूर हो गए। कई शिक्षक को तो जीवन चलाने के लिए सब्जी तक बेचना पड़ा जो कि बहुत उनके असहनीय पीड़ा को व्यक्त करता है। अब समय आ गया है जब हमें देश में शिक्षक के लिए लड़ाई में कूद पड़ना चाहिए। क्योंकि ये हमारे लिए अति आवश्यक है। 
*मानशिक समश्या*विपरीत स्थिति में शिक्षको के मानशिक स्थिति पर
भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। अब समय है जब इन सभी कुरीतियों को समाप्त किया जाना चाहिए व शिक्षक को मानशिक दबाब को शून्य किया जाने के लिए सरकार व विभिन्न सन्नस्थाओ को शिक्षक को शशक्त व बेहतर बनाया जाना चाहियें क्योकि बिना इसके देश को पूर्ण विकास मिलना सम्भव नही है। यदि इस विपरत समय में हम उनको आत्मशक्ति को ठेस पहुंचाएंगे तो देश को आगे बढ़ाना सम्भव नही। क्योकि बिना राष्ट्र निर्माता के देश का विकास नही हो सकता।
हर तरफ कोहराम मचा हुआ था 
किंतु उन्होंने ही राष्ट्र को सम्हाला।
अब बारी देश की है कि कैसे उसे बचाये
 जिसने हर विपरीत स्थिति से देश को निकाला।।
जागो अब उनका सम्मान करना सिखों।
वो है ज्ञान के पुजारी, उनके लिए भी लिखो।
आओ अब तो शिक्षा व शिक्षक के लिए सोचे।
मन्जिल दिख रहा अबतो मिलकर पहुँच।।
अब मैं कुछ अन्य पहलुओं के ऊपर बात करना चाहता हूँ जो कि निम्न है"
सकारात्मक पहलू: करोना काल में कई साकारात्मक पहलू सामने आए जो अविस्मरणीय थे।जिसने एक शिक्षक को बेहतर बनने के काम के लिए प्रेरित किया।
1* कई शिक्षक ने नए नए शोध के लिए स्वयं आगे आये व महत्वपूर्ण चीजों का निर्माण किया।
*बहुत से शिक्षक ने तो अपने शिष्यों को जोड़कर अवसर का लाभ भी उठाया जिससे समाज में नव ऊर्जा संचित किया जा सके।
* ये शिक्षक के मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि कई छोटे छोटे बच्चों ने देश के लिये मदद के लिए आगे आये अपने गुल्लकों से पैसे निकालकर 
मजदूरों व गरीबो की मदद की।
*कई शिक्षकों ने खाली समय का लाभ उठा नई नई रचनाओं का सृजन किया व लेखनी को एक नया रूप दिया।।
* कई शिक्षक स्वयं से आगे आकर गरीब लोगों को राशन व भोजन के लिए मदद करने में अभिन्न सहयोग दिया।।

अंत में मैं यही कहता हूँ यदि देश को शिखर पर ले जाना है तो शिक्षकों के महत्त्व को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहियें क्योकि यदि हम रौसनी पसन्द है तो उनका भी धन्यवाद करते रहना चाहिए जो स्वयं बाती बनकर रौसनी करते है।। 
जय गुरुदेव जय हिंद जय भारत।
मैं प्रकाश कुमार मधुबनी,
आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ