कवि डॉ. राजेश कुमार जैन (विषय-नवगीत)

सादर समीक्षार्थ
 नवगीत


 जब तुम पहली बार, मिली
 प्रिय मुझे तुम, उस उपवन में
 कैसा अनुपम, सा था वह पल
 जब मिले थे, हम दोनों के मन..।।

 देखती तुम, चंचल चितवन से 
दृष्टि न मेरी, हटती थी तुमसे
 सुध बुध अपनी, था खो बैठा
 मैं प्रेम सुधा रस, पी रहा था..।।

 अनजान डगर पर बढ़ चले
दोनों ही, अनभिज्ञ से मगर
 नहीं पता था, कुछ भी किसी को
 अंतर्मन में था, संघर्ष छिड़ा..।।

 हाय! अब क्या, कुछ आगे होगा 
कहाँ पता था, किसी को भी
 दिशाहीन से, चल पड़े थे
 हम जीवन के, कंटक पथ पर  ..।।


डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल 
उत्तराखंड

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ