कवयित्री मीनू मीना सिन्हा मीनल जी द्वारा रचना (विषय-मैं तो जन्मी जन्मजली)


मैं तो जन्मी जन्मजली

 कलम जब मेरी चल पड़ी और बन
     बन गई कविता
 लोगों ने कुछ यूंँ कहा, भटक गई है
     री तू वनिता।

 जाना था कहांँ और चली गई हो
    कहांँ
 न इधर  रही न उधर रही ,बस हुई
   यहांँ- वहांँ ।

वक्त जो बीता है हरपल, अब वापस
   नहीं होगा
 कितनी आगे रहती, अब तो जाने
    क्या होगा ।

मैं क्या करती? कहांँ- कहांँ जाती,
    किधर -किधर खपती
 मैं तो जन्मी जन्मजली, आधी-
    अधूरी में ही सजती।

 दो डग आगे एक  डग पीछे, यही तो
    कहानी रही
 मंजिल तक कैसे जाती, हरदम
     खींचातानी रही ।

बेटी में है जन्म हुआ, नारी पीड़ा
    सहती रही 
सृजन को संवारने हरदम मिटती ही
    रही

 देवी ,दुर्गा ,चंडी, काली सब में तो मैं
    ही रही
 बेबसी की चादर तले पन्नों पर
    छितराई रही।

 रक्तकुंड में पड़ी हुई सांँसो को संजोए रही
 आज जब लिखने लगी तो कहते हो क्यों लिखी?

 यह तो मेरी पीड़ा है हरदम रिसती
   रहती हूंँ
 दर्दों की इस दरिया में उबडूब होती
    बहती हूंँ

 कभी मांँ का दिल बनकर पूछो
    बेटियों का हालचाल
 कितनी निर्मम दुनिया है ,खड़े करती
    कितने सवाल।

 कवि की कोरी कल्पना नहीं, यही तो
    सच्चाई है
 बेटियों के कर्तव्यों की खत्म  नहीं
    लंबाई है।

 कलम मेरी है चल पड़ी, अब तो
    मुझको लिखने दो।
 सांसो को भरकर कलमों में ,कुछ
    पल इसमें जीने दो

 मत दो दुआएं मुझे पर अब और न
    दुत्कारो
 कितनी हिम्मत तोड़ोगे ,कभी-कभी
    तो सहलाओ

 सरिता का कल-कल जल कहांँ रुका
    है रोकने से
 वनिता भटकी नहीं, कुछ कविताएं
    रचने दो ।

कलम जब मेरी चल पड़ी और बन 
   गई कविता
 लोगों ने कुछ यूंँ कहा, भटक गई है री तू वनिता।।

*मीनू मीना सिन्हा मीनल*
राँची

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