कवि डॉ.जयप्रकाश नागला जी द्वारा 'बेटियांँ' विषय पर रचना

----- बेटियांँ ---- 
 
निर्मल - निश्छल , 
सजल , कोमल ,
मन के सागर में
जैसे खिलता
कमल
होती है बेटियांँ  ।

होंठो की हंँसी ,
आंख का
पानी भी होती है ,
जीवन के हर खूबसूरत
पल की रवानी भी होती है ।

बेटियों से घर - आंगन
चहकता  है ,
जैसे गमले में
गुलाब का पौधा
महकता है ।

माँ - बाप के लिए
इक परी होती है ,
रिश्ते निभाने में 
हर बेटी खरी
होती है ।
आसमान का तारा ,
चांद की चकोरी - सी
मिठासा बताशा और
खीर की कटोरी - सी
होती है बेटियांँ ,
नाजुक रेशम की डोरी - सी 
होती है बेटियांँ ।
रस्मो - रिवाज और
कसमे - वादों के डगर
में , 
जिंदगी बेटियों की
गुजर जाती है
रिश्तों के भंवर में ,
इस तरह उलझ कर
रह जाती है बेटियांँ ।
हर रिश्ते को दिल
से निभाती है बेटियांँ ।
गम - ओ - खुशी
मुस्कुराकर सह जाती
है बेटियांँ  ।
-----  डॉ. जयप्रकाश नागला ,
नांदेड़ , महाराष्ट्र

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