कवि नारायण प्रसाद साहू जी द्वारा शीर्षक-'मुँह में राम-राम बगल में छुरी' विषय पर रचना

शीर्षक-मुँह में राम-राम बगल में छुरी।

ये बात आप लोगों को ,
बताना है जरूरी।
बढ़ती जा रही है -
मानव - मानव की बीच की दूरी ।
ये दूरी तो बन गई है ,
आज सफलता की धूरी।
ऐसा लगता है ,
इनके बिना ज़िन्दगी अधूरी।
अगर सामने हो तो ,
करते हैं प्रशंसा भूरी-भूरी ।
सामने में न हो तो,
चलाते है अपशब्दों की छुरी ।
मुझे समझ नहीं आता है ,
ये अच्छी है या कि बुरी !
ऐसा क्यों करते है लोग,
शौक है कि कोई मजबूरी !
इनसे क्या होता है? 
उनकी इच्छा ,आकांक्षा पूरी।
क्या ?ऐसे लोगों के पास रहूंँ..
कि बनाऊँ इन लोगों  से दूरी?
लोग कुछ भी समझे इसे ,
चालाकी ,कायरता, या बहादुरी ?
बच कर रहना उनसे ,
जिनके मुँह में राम-राम बगल में छुरी ।

✍🏻नारायण प्रसाद साहू
     दुर्ग  छत्तीसगढ़
    (स्वरचित रचना)

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