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आधुनिकता के आँधी में,
ये कैसा बदलाव हुआ।
अस्मद रोज लूटी अबला की,
ये कैसा मनोभाव हुआ।।
लाज, शर्म, दयाभाव का,
अब तो कोई मोल नही है।
चोरी, लूट, हत्या, दुष्कर्म,
चारो ओर अब खेल यही है।।
जने कोई कैसे अब बेटी को,
चौराहे पर ही लूटी जाती।
बचे अगर इन गिद्धों से तो,
ससुराल में है मारी जाती।।
कैसे? कौन? बताए किसको,
होगा क्या परिणाम अभागे।
जलती रही है रोज कन्याएँ,
इस कुकर्मी संसार के आगे।।
✒️सुजीत संगम
बाँका, बिहार
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