धरती आसमान# प्रकाश कुमार,मधुबनी, जी के द्वारा शानदार रचना#

धरती है स्त्री पुरूष आसमान है।
दोनो है साथ तो ही ये जहान है।।
भले एक दूजे के महत्व से अंजान 
किन्तु दोनों के प्रेम भी तो महान है।।

एक बार आसमान धरती को देखे जा रहा था।
उसकी ओर नजरे फेरे जा रहा था।
फिर धरती जरा उझसे शरमा गई थी।
फिर उसके नजरों से घबरा गई थी।।

बोली इस तरह क्यों मुझे देखते हो।
अपने आप से कौन सा जाल फेंकते हो।।
क्या बता है जरा मूझको बता दो।
  आर पार हो ही जाये आप सुना ही दो।

आसमान मुस्कुराक़ते हुए बोला।
राज ए दिल उसके सामने खोला।।
बोला देवी तुमकों देखकर मैं हैरान हूँ।
तुम्हारे उदारता को कैसे सलाम दूँ।।
ये कैसे करती हो मुझे तुम बताओ।
अपने आप मूझको यू समझा दो।।

धरती बोली तुम ना बातों को घुमाओ।
क्या पूछना है साफ साफ समझाओ।।
आसमान ने इशारा करके यू कहा।
आखिर क्यों तुमने पापियों का बोझ सहा।
तुम तो बनकर मासूम अबतक सभी को पालती हो।
क्यों नही तुम उनपर बोझ डालते हो।
फिर कुछ इस तरह धरती माँ बोली।
 यू ना करो भूल से भी तुम ठिठोली।।

सभी है बच्चे मेरे मैं सबकी हूँ माता।
मुझसे अहित उनका नही किया जाता।।
मैं तो हूँ इनके लिए ममता की देवी।
मैं तो नही किसी से कभी बदला हूँ लेती।।
सभी है बच्चे सारे मेरे लिए एक समान।
उनके  लिए मेरा होना ही है वरदान।।

आसमान ने झुककर उसे किया प्रणाम।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

स्वरचित रचना
प्रकाश कुमार 
मधुबनी, बिहार

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