कवयित्री एकता कुमारी जी द्वारा 'बेटी' विषय पर रचना

मैं बेटी बासंती मौसम की बहार हूँ, 
मै बाबुल की बगिया का श्रृंगार  हूँ।
मत काटो डाली,बढ़ने दो, खिलने दो,
सहारा बेटा तेरा,तो मैं घर संसार हूँ।

बनकर बहन बहू बेटी प्रेयषी सब प्रीत निभायी है, 
यह बेटी चांद सितारे अंतरिक्ष सफर कर आईं हैं। 
माना कि कोमल हूँ मैं,भोली हूं और नादां भी हूँ,
पर,वक़्त आने पर हमने यम पर भी विजय पाईं है। 

संसद में गूँजा करती हैं सुरक्षा और सम्मान की बातें।
खोखली हो जाती है तब,जब होती अपमान की बातें। 
भ्रूण हत्या कर के मेरे अस्तित्व को मिटाया जाता है, 
अश्कों की सौगातें लेकर करते,बेटी-उत्थान की बातें। 

क्या कोई वस्तु हूँ मैं,जो लगाते मेरा दाम,
चौराहे पर स्वाभिमान है क्यों मेरा नीलाम।
देना है गर,तो मेरा अधिकार मुझे लौटा दो,
कन्यादान करो,लेकिन  करो नहीं बदनाम।
           ** एकता कुमारी **

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