कवि बाबूराम सिंह जी द्वारा 'माँ' विषय पर मुक्तक

करुणामयी माँ पर मुक्तक
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प्यार -दुलार  वात्सल्यमयी  माँ ,
सब कुछ बच्चों को सिखलाती।
पढा़-लिखा दिखला पथ  सारा,
चार  चाँद   जीवन  में  लगाती।
ममता  महिमा   परम   अनूठा,
प्रथम  गुरु  माता  ही   जग  में-
सृष्टि  सार  उजियार  जगत  में ,
जीवन  की   है  अनुपम  थाती।

अग-जग में नहीं माँ  की उपमा ,
बच्चों  की   माँ   दीपक  -बाती।
दुख-सुख  की है भाग्य  विधाता ,
बच्चों को खिला भुखे सो जाती।
सहज सरल  भव्य  भाव भूषित ,
तिल तिल होमकर  सर्वस्य निज-
बच्चों   की  डगमग   नइया  को,
खेई    के   माता  पार    लगाती।

माँ   चरण   में   तीर्थ  धाम  वसे,
यह   वेद   शास्त्र   बतलाता   है।
अर्चन  पूजन  वंदन  करता   जो,
राज  हर  खुशियों  का  पाता  है।
परमात्मा  से  भी  बडी़   है    माँ ,
यही  सर्व  सम्मत  का सत्य  सार-
माँ   चरणों   के   आशीर्वाद    से,
यह  जीव  जग  से  तर  जाता है।

माँ    कल्पवृक्ष    माँ     कामधेनु ,
माता    ही   पारस    मणी     है ।
जग  जीवन  ज्योतित  कर  देती,
माँ  वह  सदज्ञान   की  छडी़  है ।
दुख  सुख  में  परिवर्तित  करके,
सत्य   सार   सदा   देने    वाली-
उत्तम    से    उत्तम     सर्वोतम ,
माँ    महा    औषधी   जडी़   है।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज(बहार)841508
मो0नं0- 9572105032
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