मन के भाव#भास्कर सिंह माणिक कोंच जी द्वारा अद्वितीय रचना#

मंच को नमन
          मन के भाव
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यह मानव जन्म हुआ है
सत्कर्म करो
आप अपने जीवन में 
मत दुष्कर्म करो
परहित के भाव सदा
जीवन आह्लादित करते हैं
नहीं किसी से कभी आप
भूलकर भी दुर्भाव करो


मानव का जीवन मिलता है
सत कर्मों के फल से
इसका मत दुरुपयोग करो
तुम कहकर कल कल से
मत अंगारे बरसाओ
सरिता जैसा व्यवहार करो
झरने बनकर सदा बहो
जीवन से तुम प्यार करो

फूल हमें सिखाते हैं
हर हाल रहो मुस्कुराकर
चलो समय के संग संग
अपने कदम मिलाकर
समझो जीवन के अर्थों को
शूल फूल क्या सबसे दुलार करो
असहाय निर्धन निर्मल का तुम
कभी नहीं उपहास करो
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक कोंच

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