कैसा जहान बनाया हमने# प्रकाश कुमार मधुबनी#

ये कैसा जहान बनाया हमने
*स्वरचित रचना*
ये कैसा जगत बनाया है हमने।
हँसते हुए को रुलाया है हमने।।

ये डोर नाजुक है मगर जान के।
 प्रेम के डोर को जलाया है हमने।।

गैरों का हाथ थामते हुए ये भी ना सोचा।
किस कदर अपनो को चोट पहुँचाया हमने।।

जिंदगी के यू तो रास्ते बड़े है।
जहाँ सरेआम कत्ल होता रहा।।

कुछ तो मौत के तांडव करते रहे।
कुछ के पीठ पीछे खंजर चलता रहा।।

सीख लिया हमने ये क्या इस जहाँ से।
वो सीख के बच्चों को सीखाया है हमने।।

ना रखा अपनों पर भरोसा ना रखने दिया।
जिंदगी को सरेआम लाचार होने दिया।।

इतना बेरहमी डूबते चले गए।
की कहाँ चाह के मुस्कुराया है हमने।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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