स्वेता कुमारी धुर्वा जी द्वारा बेहतरीन रचना#बहुरानी#

बहुरानी
बेटी ही बहुरानी बन जाती है,
कब देखते ही देखते बड़ी हो जाती है।
बेटी थी तो मस्त उड़ती सी नज़र आती थी,
अब वही घूंघट में सहमी सी नज़र आती है।
बेटी ही बहुरानी बन जाती है।।

बेटी तो मीठी चीनी होती है,
हर हाल में घुल मिल जाती है।
बहुरानी तो नमक सी नज़र आती है,
घुल मिल के भी अलग सी रह जाती है।
बेटी ही बहुरानी बन जाती है ।।

कल तक एक ही माँ बाप पर राज करती थी,
अब तो दो - दो माँ बाप होते हुए भी डरी सी नज़र आती है।
जिसके ख्वाब ख्वाहिश थी कुछ बनने की,
अब चार दीवारों में कैद नज़र आती है।
बेटी ही बहुरानी बन जाती है।।

विदा होते समय एक बात बोली जाती है,
आज से ये बहु नहीं हमारे लिए बेटी ही है।
ससुराल आते ही बेटी तुरन्त बहु बन जाती है,
चार ताने ना मारे जब तक बेटी कहाँ बहु बन पाती है।
फिर भी सब सह जाए वही बहुरानी कहलाती है।
बेटी ही बहुरानी बन जाती है।।

बेटे की गलती में भी बहु की ही गलती मानी जाती है।
सास के साथ - साथ पड़ोसी के ताने भी सुनी जाती है।
हर बात और गलती को माँ-बाप के संस्कारो से जोड़ी जाती है।
फिर भी पति के लिए जान लुटाती है।
बेटी ही तो बहुरानी बन जाती है।।

स्वरचित रचना
स्वेता कुमारी
धुर्वा, रांची
झारखंड।

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