कवयित्री एकता कुमारी जी द्वारा 'प्रेम' विषय पर रचना

बड़े नादान हो जी,तुम जरा समझा करो बातें,
मुझे तुमसे मुहब्बत है ,जरा समझा करो बातें। 
यूँ ही तो मैं किसी का पीछा किया नहीं करती, 
मुझमें तुम हो तुझमें मैं ,जरा समझा करो बातें।
             
मुहब्बत करती हूँ,मैं तुमसे यह  कैसे छुपाऊं?
मुहब्बत करती हूँ,मैं कितना यह  कैसे बताऊँ?
बहुत नादां हो,कही नहीं जाती, इश्क की बातें
गुनगुनाती हूँ नगमें जो, तुमको कैसे सुनाऊँ?
            **एकता कुमारी **

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