भास्कर सिंह माणिक,कोंच जी द्वारा बिषय मन के उदगार पर बेहतरीन रचना#

मंच को नमन

 मन के उदगार
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मैं   कोई   मर्मज्ञ   नहीं 
मैं  पूर्ण  अनभिज्ञ  नहीं 
नित रहता हूं प्रयासरत
मैं   मित्रों  सर्वज्ञ   नहीं 

ईनाम  से  लगाव  नहीं
तिरस्कार के भाव नहीं
प्रेम पथ पर चलता  हूं
किसी  से  दुर्भाव नहीं

मील  के पत्थर गिने नहीं
हमने सुगम राह चुने नहीं
विद्वानों  से  सीख  रहा हूं
हम  अवरोधक  बने नहीं

मैं अंगुलियां उठाता  नहीं
बवंडर  से  घबराता  नहीं
अभ्यास करता हूं निरंतर
रणभू  से  मैं भागता नहीं

मैं घोषणा करता हूंँ कि यह मुक्तक मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच

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