कवि सुखदेव टैलर जी द्वारा रचना जय जवा, जय किसान"

बदलाव मंच,  साप्ताहिक प्रतियोगिता 
सितम्बर -अक्टूबर 2020
बदलाव राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मंच को नमन करता हूँ। 
तत्पश्चात " प्रतियोगिता के बिंदु "जय जवा, जय किसान"
से सम्बन्धित लेख आपकी सेवा में  परोस रहा हूँ।

भारत के लाल "शास्त्री जी"

वैसे तो लाल बहादुर शास्त्री जी का प्यार का नाम नन्हें था और वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। पर जब उन्होने "काशी विद्यापीठ" से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। तभी से अपने नाम में से श्रीवास्तव हटाकर शास्त्री जोड़ लिया और इस प्रकार लाल बहादुर श्रीवास्तव अब श्री लालबहादुर शास्त्री बन गए...
और जैसे जैसे समय बिता वैसे वैसे उनकी देशभक्ति,इमानदारी,परिश्रम व उनकी साफ सुथरी छवी चारों दिशाओं में फैलन लगी। परिणामस्वरूप "शास्त्री" शब्द श्री लालबहादुर  उर्फ़ नन्हें जी का पर्याय बन गया था। 
समय बितने के साथ साथ बहुत सी अच्छी और बुरी घटना घटित होती है। सो 27 मई 1964 को एक बुरी घटना घटित हुई... हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी का निधन हो गया। 
अब देश के सामने एक नए प्रधानमंत्री 
चुनने की चुनौती थी। 
वैसे तो प्रधानमंत्री बनाने की कोई चुनौती नही थी 
पर... देश को एक साफ सुथरी छवी और परिश्रमी प्रधानमंत्री की आवश्यकता थी। 
ऐसे बहुत से नेता थे । पर... सबसे अधिक इन पर खरा उतरने वावा नेता श्री लालबहादुर शास्त्री जी थे। 
सो 9 जून 1964 को एक अद्वितीय प्रधानमंत्री हमारे देश को मिल चुका था। 
पर...अच्छी बुरी घटना,घटना कहाँ पीछा छोड़ती है। देश की विकट स्थिति में "घाव में घोबा" हुआ। कहने का अर्थ 1965 में पाकिस्तान ने नापाक हरकत करते हुए भारत की पवित्र भूमि पर हवाई हमला कर दिया। तब हमारी तीनों सेना के अध्यक्ष ने शास्त्री जी पुछा - 
सर क्या हुक्म है ?
शास्त्रीजी ने तत्काल उत्तर दिया: "आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?"
यह बात कोई मजबूत और समझदार प्रधानमन्त्री ही बोल सकता है। क्योंकि उस समय भारत की स्थिति ठीक नही थी और तीन साल पहले ही नेहरू जी के नेतृत्व में देश ने चीन से शिकस्त खाई थी।
लेकिन पाकिस्तान यह सोच कर बहुत बड़ी गलती कर बैठा, उसको नही मालूम था यह जो वामन प्रधानमंत्री दिख रहा है यह वामन भगवान की तरह एक पेर में पूरे पाकिस्तान को माप लेगा। 
और हुआ भी वैसा आदरणीय लालबहादुर शास्त्री ने एक नारा "जय जवान, जय किसान " दिया और पूरा देश वामन भगवान की तरह विशाल शरीर धारण कर लिया।
परिणामस्वरूप पाकिस्तान औंधे मुँह पड़ा। जिसकी धुल आज भी उसके मुँह के चिपकी हुई है। और हमारी सेना लाहौर तक पहुँच गई। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण हमारे वीर सैनिकों द्वारा जीती हुई भूमि पाकिस्तान को वापस करनी पड़ी। लेकिन लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा यह भूमि मैं वापस नही लौटा सकता, दूसरा प्रधानमंत्री लौटा देगा।और उसी रात 11 जनवरी 1966 को भारत ने एक अनमोल हीरा खो दिया।  शास्त्री जी की रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई। लेकिन हमारे हृदयों में हमेशा के लिए शास्त्री जी की पवित्र लौ प्रज्वलित हो गई। जो कभी नही बुझेगी। 
शास्त्री जी के दो प्रसिद्ध नारे :-
1 "जय जवान, जय किसान" (1965)
2. "मरो, नही मारो" (1942)
          मौलिक लेख
    सुखदेव टैलर, निम्बी जोधाँ
          नागौर,  राजस्थान

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ