कवयित्री मीनू मीनल जी द्वारा रचना “पिंजरे की है जिंदगी"

चार अक्टूबरः विश्व पशु दिवस पर विशेष
छंदमुक्त रचना

   पिंजरे की है जिंदगी

पिंजड़े में है रहना, पिंजरे में है सोना
पिंजरे की है जिंदगी हरपल रहता है खोना

 मूक हूंँ बधिर नहीं सुनती रहती सब कुछ मैं 
बेजुबान बनाया मुझको रहती हूंँ घुट-घुट कर मैं

देख -देखकर खुश होता तू ,मेरा दर्द न समझे 
घायल होऊँ चीख न पाऊंँ, आंँसू  खुद गिर जाए

किस्मत वालों के ही आंँसू बन जाते हैं मोती
लौह-सीखचों में बंँधी मैं तो हरदम रोती

दाना-पानी देकर समझे मैं खुश हूंँ भरा-पूरा
पिंजरे का तू दर्द न जाने सबकुछ है बेकार यहांँ

न कोई संगी न कोई साथी मैं तो हूंँ बस एक खिलौना
एकदिन बंद करो अपने को, मेरे दुख को भी बांँटो ना

पिंजड़े खोलो मेरा तुम मैं भी दुनिया सारी  देखूँ
दौड़ लगाऊंँ मस्ती का, डग-डग में धरती नापूँ

मैं बेजुबान ,एक खरगोश डीकू  नाम है मेरा
 खोलो बंधन पिंजरे का कल्याण करें प्रभु तेरा

*मीनू  मीनल*

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ