मंच को नमन
दिनांक -11 अक्टूबर 2020
विधा -मुक्तक
संघर्ष ही तो जिंदगी है
संघर्ष से ही तो बंदगी है
जो पी गया हंसकर के गम
महकी उसी की जिंदगी है
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मैं गीता कुरान बाइबिल का ध्यान रखता हूं
तुलसी रहीम खुसरो का मान रखता हूं
है मुल्क की माटी से हमें जां से ज्यादा प्यार
मैं अपनी हर धड़कन में हिंदुस्तान रखता हूं
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गीत मेरे स्वर तुम्हारे मिलन का संगम बना
तीर्थ है साहित्य का यह भाव का उद्गम बना है
माणिक बैर मैं होती सदा विध्वंस की गति
प्रीति से दुश्मन भी दोस्तो हम दम बना है
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मैं घोषणा करता हूं कि यह मुक्तक मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच
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