कवयित्री नेहा जैन जी द्वारा रचना “"जल ही जीवन""

"जल ही जीवन"
आओ कल्पना करते हैं
जल के बिना जीने की
सूखी नदियाँ, सूखे तालाब
न हो कल कल करते झरने का जल
सूखे पड़े हो कुँए सारे
घर के मटके भी खाली है
औऱ प्यास से हम व्याकुल हो
सूखे अधर, गला जैसे रुँध गया हो
बोलो कितने दिन जी पाएँगे
बंजर जमीन हो जाएगी
पौधे भी मर जाएंगे
जीव जंतु  भी काल के गाल में समा जाएंगे
होगा फिर पृथ्वी का विनाश
देखो। प्रलय आएगी
जीती जागती दुनियाँ ये मृतकों का टीला बन जाएगी
सँभल जाओ हे प्राणी तुम
न करो पानी की बर्बादी तुम
व्यर्थ जो पानी पानी बहता है

कितना पाप लगता है
समझो इसका मोल तुम
ये पानी। है अनमोल
कर जोड़कर करूँ निवेदन
पानी है तो  जिंदगानी हैं
वर्ना खत्म सबकी कहानी है
स्वरचित
नेहा जैन

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