दामिनी
दानवों के देश में जन्मी तू दामिनी।
नर- पिशाचों के गह्वर में पली तू दामिनी ।।
अहल्या यहांँ शिला बन ठोकरे खाती रही।
द्रौपदी चीरहरण में विधवा विलाप करती रही ।।
नग्नता देखने को व्याकुल था दुर्योधन।
पतियों संग सर झुकाए बैठे थे परिजन ।।
बार-बार धरती यहांँ फटती नहीं।
इज्ज़त हरेक दिन यहांँ लुटती रही।।
बेटियों-बहनों की दुहाई देनेवालों।
मांँओ को सेजों पर सुलाने वाले।।
काश तेरे घर भी कुछ ऐसा हो जाए। चीखों और कराहों में तू भी खो जाए।।
अब न इस धरती पर आना तू दामिनी।
सितारों के बीच अपनी दुनिया बसाना दामिनी।।
तेरी आंँहों से समंदर सुख जाए।
तेरी कराहों से हिमालय टूट जाए।।
आसमान टुकड़ों में गिर जाए।
चांँद में आग लगे सूरज बुझ जाए। और यह दुष्कर्मी दिल्ली राख में बदल जाए।।
ऐसी दुआ निकलती है तेरे लिए ।
दुआ खुद बद्दुआ बन जाती है दामिनी।।
मीनू मीना सिन्हा मीनल विज्ञ
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