बेदाग इश्क
कौन कहता है कि हम कविता सुनाते हैं आंसू छुपा कर इस महफिल में मुस्कुराते हैं दिल से निकलती है आह तो भी सभी वाह-वाह करते हैं और आपकी तालियों में हम खो से जाते हैं और फिर आप की खिदमत में अपने दिल की बतिया सुनाते हैं।।
अब भी यह दिल दर्दे गम से बेजार नहीं है
टूट जाऊंगा गर कह दो मुझसे प्यार नहीं है।।
काजल की कोठरी से निकले बेदाग हम
इल्जामों के तुम्हारे हम गुनहगार नहीं हैं।।
रस्म ए वफा उल्फत की कई दीवारें खड़ी है
जमाने में मुफलिसी में कोई यार नहीं है।।
जीते हैं हम हर वक्त जिंदादिली के साथ
रंजो गम के लिए कोई भी दावेदार नहीं है।।
आंखों में नमी हो फिर भी होठों पर मुस्कुराहटें
छुपे आंसू पोंछने के तलबगार नहीं है ।।
हुए बेवफा और लौटकर आए ही नहीं तो
ऐसी मोहब्बत से हमको भी सरोकार नहीं है।।
जा खुश रहना तू अपनी दुनिया में हो के मस्त
तुझसे मिलने के लिए कोई बेकरार नहीं है।।
इस जमाने में बिकता है बेमोल मोहब्बत भी
मेरी इस पाक मोहब्बत का तू खरीदार नहीं है।।
इस 'चांद' को तो चलना सिखाया है ठोकरों ने
मंजिलें पाने को बैसाखी की दरकार नहीं है।।
रांची झारखंड
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