कवि संजय कुमार विश्वास जी द्वारा रचना “आखिर कब तक तू हमपर कहर बरपाएगा ”

आखिर कब तक तू  हमपर  कहर बरपाएगा 
आज न कल अपने पापों की सजा तू पाएगा

कब तक यूँ ही बेगुनाहों  को  तू  सताते रहेगा 
ज़बर्जस्ती किसी पर अपना हक जताते रहेगा 
अभी भी वक्त है जालिम थोड़ा बहुत सुधर जा 
नफरत को छोड़ मोहब्बत की राहों से गुजर जा 
आएंगी एक  ऐसी  घड़ी  तू  बड़ा  पछताएगा 
आज न कल अपने  पापों की सजा तू पाएगा 

इंसान है तो जरा दिल में इंसानियत भी रख लें 
मोहब्बत ,भाईचारे ,अच्छाई का स्वाद चख लें 
अरे सतकर्म कर ,पापकर्म में कुछ रखा नहीं है
दूसरे को गम देने वाला कभी गमों से बचा नहीं है
तू अगर नहीं सुधरा तो कहीं का नहीं रह जाएगा 
आज न कल अपने पापों की सजा तू पाएगा 

आखिर कब  तक तू  हमपर  कहर बरपाएगा 
आज न कल अपने  पापों की सजा तू पाएगा
आज न कल अपने  पापों की सजा तू पाएगा
आज न कल अपने  पापों की सजा तू पाएगा

कवि संजय कुमार विश्वास
तिसरी ,गिरिडीह ,झारखंड

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