*डॉ. प्रकाश मेहता जी द्वारा बिषय नारी शक्ति पर बेहतरीन रचना#

बदलाव मंच
साप्ताहिक प्रतियोगिता
दिनांक-20.10.2020
*नवरात्री में क्या कन्या पूजन ऐसे ही मनाते हैं..???*
मुहल्ले की औरतें कन्या पूजन के लिए तैयार थी,
मिली नहीं कोई लड़की, उन्होंने हार अपनी मान ली !
 
फिर किसी ने बताया, अपने मोहल्ले के है बाहर जी,
बारह बेटियों का बाप, है सरदार जी !

सुन कर उसकी बात, हँस कर मैंने यह कह दिया,
बेटे के चक्कर में सरदार, बेटियांँ बारह कर के बैठ गया !

पड़ोसियों को साथ लेकर, जा पहुँचा उसके घर पे,
सत श्री अकाल कहा, मैंने प्रणाम उसे कर के !

कन्या पूजन के लिए आपकी बेटियांँ घर लेकर जानी है,
आपकी पत्नी ने कन्या बिठा ली, या बिठानी है ?

सुन के मेरी बात बोला, आपको कोई गलतफहमी हुई है,
किसकी पत्नी जी ? मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है !

सुन के उसकी बात, मैं तो चकरा गया,
बातों-बातों में वो मुझे क्या-क्या बता गया !

मत पूछो इनके बारे में, जो बातें मैंने छुपाई है,
क्या बताऊँ आपको, कि मैंने कहाँ-कहाँ से उठाई हैं !

*माँ-बाप इनके हैवानियत की हदें सब तोड़ गए,*
*मन्दिर, मस्ज़िद और कई हस्पतालों में थे छोड़ गए !*

*बड़े-बड़े दरिंदे है, अपने इस जहान में,*
*यह जो दो छुटकियांँ है, मिली थी मुझेे कूड़ेदान में !*

*इसका बाप कितना निर्दयी होगा, जिसे दया ना आई नन्ही सी जान पे,*
*हम मुर्दों को लेकर जाते हैं, वो जिन्दा ही छोड़ गया इसे श्मशान में !*

*यह जो बड़ी प्यारी सी है, थोड़ा लंगड़ा के चल रही है,*
मैंने देखा के तलाब के पास एक गाड़ी खड़ी थी !

*बैग फेंक कर भगा ली गाड़ी, जैसे उसे जल्दी बड़ी थी,*
शायद उसके पीछे कोई बड़ी आफ़त पड़ी थी !

बैग था आकर्षित, मैंने लालच में उठाया था,
*देखा जब खोल के, आंँसू रोक नहीं पाया था !*

*जबरन बैग में डालने के लिए, उसने पैर इसके मोड़ दिये थे,*
*शायद उसे पता नहीं चला, कि उसने कब पैर इसके तोड़ दिये थे !*

सात साल हो गए इस बात को, ये दिल पे लगा कर बैठी है,
बस गुमसुम सी रहती हैं, दर्द सीने में छुपा कर बैठी है !

सुन के बात सरदार जी की, सामने आया सब पाप था,
लड़की के सामने जो खड़ा था कोई और नहीं, वो उसका बाप था !

देखा जब पडोसियों की तरफ़, उनके चेहरे के रंग बताते थे,
वो भी किसी ना किसी लड़की के, मुझे माँ-बाप नजर आते थे !

दिल पे पत्थर रख कर, लड़कियों को घर लेकर आ गया,
बारी-बारी से सब को हमने पूजा के लिए बिठा दिया !

जिन हाथों ने अपने हाथ से, तोड़े थे जो पैर जी,
टूटे हुए पैरों को छू कर, मांग रहे थे ख़ैर जी !

*क्यों लोग खुद की बेटी मार कर, दूसरों की पूजना चाहते हैं ?*
*पुछता है "प्रकाश"... क्या लोग कन्या पूजन ऐसे ही मनाते हैं??*

*बेटी को जिसने मरवा दिया था पत्नी की कोख में...* 
*वो बस्ती में बच्चियांँ ढूंढेगा*
*नवरात्री के #कन्याभोज में!*
 
*डॉ. प्रकाश मेहता, बेंगलुरु*

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