तब तुम मेरे पास आना प्रिये
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जब उठे पीर पावन रतन के लिए।
तब तुम मेरे पास आना प्रिये।
सुचि समर्पणका अन्तः जलेजब दीया।
प्रेम विह्वल हो मन जब हुलसे हिया।
दिन आतुर हो रजनी मिलन के लिए।
तब तुम मेरे पास आना प्रिये ।
दूर-दूर तक नहीं कोई आस- पास हो ।
मन में पावन भरा प्रेम विश्वास हो।
छटपटाता हो मन प्रेम धन के लिए।
तब तुम मेरे पास आना प्रिये ।
निज दिल में खिला प्यार का फूल हो ।
मन से माया निज स्वार्थ निर्मुल हो।
सत्य अविरल नयन प्रेमाश्रु लिए ।
तब तुम मेरे पास आना प्रिये ।
कोटि कठिनाई हो भले मग में ।
प्रेम जीवन रसायन सरस जग में।
प्रेम पियुष ले तारन-तरन के लिए।
तब तुम मेरे पास आना प्रिये ।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)
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