कवि मुनीश कुमार वर्मा जी द्वारा 'विभिन्न रूपों में गांधीजी' विषय पर रचना

*विभिन्न रूपों में गांधीजी*
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गांधीजी को सफाई करने में बड़ा आनंद आता था। वे कहते थे कि किसी भी देश के लोगों की सफाई की कसौटी यह है कि उनका शौचालय साफ है या नहीं।76 वर्ष की आयु में उन्होंने गर्व के साथ कहा था मैं जिस शौचालय का इस्तेमाल करता हूं वह बिल्कुल साफ स्वच्छ रहता है। वहां बदबू का नाम भी नहीं है। मैं उसे खुद ही साफ करता हूं। कई बार वे अपना परिचय भंगी के रूप में देते थे।
एक बार एक विदेशी ने गांधी जी से पूछा यदि आपको 1 दिन के लिए भारत का बड़ा लाट बना दिया जाए तो आप क्या करेंगे?
गांधी जी ने कहा राज भवन के पास भंगियों की जो गंदी बस्ती है मैं उसे साफ करूंगा।
मान लीजिए आपको 1 दिन और उस पद पर रहने दिया जाए तब। उन्होंने कहा दूसरे दिन भी यही काम करूंगा।
गांधीजी ने चप्पल बनाने की कला दक्षिण अफ्रीका में अपने जर्मन मित्र कलेन बाख से सीखी थी।
बाद में वे जूता भी बनाने लगे थे उन्होंने कई लोगों को जूता बनाना सिखाया था।एक जमाने में गांधी जी ने पैंट के साथ चप्पल पहनने का फैसन चला दिया था। क्योंकि गर्म देश में चप्पल ज्यादा आरामदेह होती है। 63 वर्ष की उम्र में गांधीजी सरदार पटेल के साथ यरवदा जेल में बंद थे।बल्लभ भाई को एक जोड़ी चप्पलों की जरूरत थी लेकिन जेल में कोई मोची नहीं था गांधी जी पटेल से बोले अगर मुझे अच्छा चमड़ा मिल जाए तो मैं तुम्हारे लिए चप्पल बना सकता हूं।
आश्रम में गांधीजी कई ऐसे काम भी करते थे जिन्हें आमतौर पर नौकरी का काम माना जाता है। वे प्रतिदिन चक्की पर आटा पीसते थे रसोई घर में सब्जियां खेलते थे आश्रम के बाहर बने पुणे से वह रोज पानी भी खींचते थे।
गांधीजी चावल दाल रसेदार सब्जी सलाद संतरे और संतरे के छिलके का मुरब्बा केक बिना खमीरा या बेकिंग पाउडर की डबल रोटी अच्छी चपाती और खरखारा बना सकते थे। गांधीजी पाककला को शिक्षा का आवश्यक अंग मानते थे। गांधी जी जब इंग्लैंड में पढ़ते थे तब 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार भोजन बनाया था। वह स्टॉप पर अपना नाश्ता और रात का भोजन बनाते थे।बाद में सेवा ग्राम में भी उन्होंने पाक कला को बिल्कुल सरल बना दिया था। उन्होंने अल्पाहार संबंधी नए नए प्रयोग किए और यह रूचि उनमें जीवन भर बनी रही।

बापू के भारत का ऐ हाल है
सरकार की नजर में तो
सारी जनता खुशहाल है।
चारों तरफ है लूट का खसोट
भूखमरी बेचारी जनता
किसको ये मलाल है।
कैसे मनायें 2 अक्टूबर
बापू के भारत का ऐ हाल है।
नौकरी पेशा हो या किसान
हर कोई यहां  बेहाल है।
गरीब होते जा रहे और गरीब
अमीर तो मालो माल है।
नशाखोरी और घूसखोरी
हर कोने में बैठा दलाल है।
कैसे मनायें 2 अक्टूबर
लोकतंत्र का यह हाल है
बापू के भारत का ये हाल है ।

सेवाग्राम में अक्सर कहा जाता था कि अगर बापू को अपने पास बुलाना है तो बीमार पड़ जाओ। वेहर बीमार व्यक्ति की खबर लेते रहते थे। एक बार उन्होंने सेवाग्राम में रोज 1 घंटे रोगियों को देखने का निश्चय किया। आसपास के गांव के कई लोग उनके पास आने लगे।सर के लिए उनका एक ही नुस्खा था हरी सब्जी खाओ मट्ठा पियो और मिट्टी की पट्टी रखो।उन्होंने अपने पर और पत्नी बच्चों पर प्राकृतिक चिकित्सा के कई प्रयोग किए। पंडित  मदन मोहन मालवीय गांधीजी को भिखारियों का राजा कहते थे। सार्वजनिक कामों के लिए जनता से धन मांगने में वे दुनिया भर में सबसे आगे थे। एक बार में एक धनी व्यक्ति के यहां गए और उससे ₹80 चंदा मांगा।लेकिन वह व्यक्ति ₹40 से अधिक देने पर राजी ना हुआ। उस समय गांधी जी भूखे और थके थे,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और सारी रात उसके यहां बैठे रहे। सुबह ₹80 लेकर ही वे वहां से हटे।जब भी देश के किसी हिस्से में भूकंप बढ़िया अकाल जैसी आपदा आती थी तो वे पीड़ितों के लिए झोली फैला कर भीख मांगने निकल पड़ते थे
एक बार एक जेल के डॉक्टर ने गांधी जी से पूछा क्या आप ऐसा नहीं मानते कि स्वस्थ शरीर वाले को भीख मांगने से रोकना चाहिए। क्या आप इसके लिए कानून बनाने के पक्ष में हैं? 
जरूर गांधी जी ने उत्तर दिया लेकिन मेरे जैसे लोगों को भीख मांगने की छूट रखनी चाहिए।

गांधीजी कुशल नई भी थे वे अपने बाल स्वयं काटते थे। उनके आश्रम में कोई नाई नहीं था। सब एक दूसरे के बाल काटते थे। वे अच्छे धोबी भी थे। अपना खर्चा घटाने के लिए उन्होंने खुद अपने कपड़े धोना शुरू किया। वे अखबारों के लिए लेख भी लिखते थे।उन्होंने इंडियन ओपिनियन यंग इंडिया और हरिजन पत्रिका का संपादन भी किया है। सिर्फ यहीं बस नहीं है। गांधीजी और भी बहुत कुछ थे। सपेरा पुरोहित सेनापति कैदी नीलामी करता और भी जाने क्या-क्या। लेकिन गांधीजी का हर रूप सच्चा और मन पर गहरी छाप छोड़ने वाला है।

नाम - *मुनीश कुमार वर्मा*
(पत्रकार एवं साहित्यकार)
पोस्ट - जरीडीह बाज़ार
जिला - बोकारो, पिन - 829114
(झारखण्ड)
ई-मेल- munishverma755@gmail.com

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