वर्तमान परिदृश्य में एक रचना पटल पर समीक्षार्थ सादर प्रस्तुत है
*समाज और सोंच*
क्यों समाज बटा है जद में
विचारों को बतलाते तो,
ले बेटी को परेशान है
स्व बेटों को समझाते तो।
नारी निर्बल थी न जग में
बेटी न निर्बल कर डालो,
धर्म व सत्य की परिभाषा
गीता पढ़ा बतलाते तो।
करना जुर्म अधर्म है यदि
जुर्म सहना भी अधर्म है,
भेद मिटा बेटा व बेटी
व सही राह दिखलाते तो।
आजाद परिन्दा बेटा व
क्यों बेटी सर बोझिल रहे,
बेटी को मिलें बेड़ियां
मगर बेटों को कुछ न कहे,
सिखा दो बेटी लाज शरम
जो कि सुन्दर सा गहना है,
यूँ ही समाज में बेटों को
आदर करना सिखलाते तो।
शेर कई निकले जहाँ में
पर शेरनी क्यों कम निकले,
सशक्त होने से नारी के
समाज का क्यों दम निकले,
नारी से अस्तित्व जहाँ में
सब नारी का सम्मान करे,
मूल परीक्षा और शिक्षा
हर बेटों को बतलाते तो।
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