*कृपा करो हे मांँ जगदंंबे*
प्रसव की पीड़ा है जिंदगी
दिन कटते नहीं कटते रैन
पद-पंकज में ध्यान लगाए
दरस- तरस हुए मेरे नैन।
भूल गई थी तुझको कब मै?
जिसको अब मैं याद करूंँ,
कैसा जीवन पाया मैंने
नहीं अंत है नहीं शुरू।
दीप जला कर बैठ गई मैं
सांँसो की जलती है बाती,
अब तो सुध लो, मेरी माते!
जीवन-मृत्यु है आती -जाती।
छूटे जब इस तन से प्राण
रहना मेरे साथ ही अम्बे
मनभावन छवि हो नैनों में
कृपा करो हे मांँ जगदंबे।।
मीनू मीना सिन्हा मीनल विज्ञ
0 टिप्पणियाँ