*पिता*
=============
हमारे लिए
संसार होता है पिता,
मां का श्रृंगार
होता है पिता।
भगवान का रूप
होता है पिता,
दिल से सदा
दुआएं देता है पिता।
अपना पेट काट-काट कर
हमें खिलाते थे पिता,
ख़ुद की इच्छाओं को
दिल में दबाते थे पिता।
मुझे अपने कंधों पर बैठा
घूमाते थे पिता,
कभी घोड़ा बन
अपनी पीठ पर चढ़ाते थे पिता।
मैंने कभी आराम करते
नहीं देखे पिता,
फिर भी कभी नहीं थकते थे पिता।
समझे नहीं हम
आपकी भावनाएं हे पिता,
सोचते थे नाजायज़ दख़ल
देते हैं पिता।
आपके आशीर्वाद से
सब कुछ पाया है मैंने पिता,
मगर आपके लिए
मैं कुछ नहीं कर पाया पिता।
रचनाकार:- शैलेन्द्र सिंह शैली
महेन्द्रगढ़, हरियाणा।
0 टिप्पणियाँ