बहू बिटिया
मैं अनजान रह गई उस भाव से जो देती है बेटियांँ
वंचित रही उस सुख से जो मां बाप को देती है बेटियांँ
कुछ अनकहा ही रह गया जो बांट लेती हैं बेटियांँ
मिला पुरसुकून उन्हें जिन्हें मिलती है बेटियांँ
भगवान का दिया नेमत होती है बेटियांँ
भाग्य से बेटा मिले सौभाग्य से मिलती है बेटियांँ
कोखजाई ना हो तो भी मुझे भाती है सबकी ही बेटियांँ
सब सुख सच्चा पर कुछ कच्चा जब ना हो बेटियांँ
है अधूरा जब तलक आंँगन में न खेलती है बेटियांँ
पर मेरे जज्बात सच्चे मेरे आंगन में आएगी ही बेटियांँ
मेरे हाथ का नहीं यह गढ़न भगवान का दिए दो अनमोल रतन जो लाएंगे किसी घर की दो बेटियांँ उन्हें अपने मन आंगन में गुड़िया की तरह सजाऊं सारा सुख मैं पाऊं जब मैं फिर से बनूं मां और बन जाए मेरी बहुएं भी बेटियांँ।
रजनी शर्मा चंदा
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