कवयित्री डॉ. अलका पाण्डेय जो द्वारा रचना “ज्ञान-लघुकथा"

ज्ञान - लघुकथा 

पं . काशी नाथ बहुत विद्वान थे दूर दूर तक बुलावा आता था , एक दिन उनके पड़ोसी ने एक बार उनसे प्रश्न कर दिया की आप यह बताये की पाप का गुरु कौन है ,ज्ञान गुरु देता  है पैसा लक्ष्मी जी देती है । आदि पर पाप कौन करवाता है , अब पं. जी चक्रव्युह में फँस गये बहुत ग्रथं वेद पढ डाले पर उनकी समझ में नहीं आ रहा था रोज़ सुबह शाम किताबे टटोलते , आज कुछ ज़्यादा ही परेशान थे सोच रहे थे मेरी सारी पढाई व्यर्थ , माथे पर पसीना आ रहा था तभी पंडिताइन चाय देने आती है , पॉडित को पसीने में तर बतर देख बोली का हो पंडित कौन सी परेशानी है पंडित ने बताया तो “ पंडिताइन ज़ोर से हंँसी और बोली बस इतनी सी बात हम अभी बताते हैं पर यह
बताओ बताने पर हमें क्या मिलेगा , 
पंडित बोले जो कहोगी वह मिलेगा , सच्च  पहले हाथ पर दक्षिणा रखो तब बतायेंगे और बाचार से चार साड़ी दिलवानी पड़ेगी । 
“ पंडित जी बड़ी लोभीन हो तुम हमारी बिल्ली हम पर म्याऊँ..
क्या कहाँ हम लोभी है लोभ करते है । 
हाँ हाँ ...तुम लोभी हो ..,
अभी भी न समझे पंडीत लोभ ही पाप का गुरु है लोभ के कारण ही सब पाप करते है नर्क भोगते हैं इतना पढ़ लिख कर क्या फ़ायदा जो रहस्य या मूल बातें ही न पता हो । 
पंडित खिसियाते हूये बोले सच्च  कह रही हो तुम मन से पूजा ध्यान करती हो , जो पंढती हो आत्मसात करती हो । मैं जिविका चलाने के लियें करता हूँ ! रट्टा मार कर याद करता हूँ 
मैं कई दिनों से खोज रहा था पर मेरी समझ में यह बात क्यों नहीं आई । 
“क्यों की गुरु बिना ज्ञान नहीं मिलता चलो दक्षिणा निकालो पंडिताइन बोली “
“ले लेना तुमने बहुत बड़ा प्रश्न चुटकी में हल कर दिया ? 
मेरी इज़्ज़त भी बचा ली 
सच्च औरतें बहुत कुछ जानती है 
जो पुरुष नहीं समझ पाते 
धन्य है नारी महिमा ..

डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई

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