बदलाव मंच को नमन
बेटी
जन्म लिया हूँ बेटी बनकर
घर के सुख संपत्ति का
थैला भरने |
घर की लाडली हूँ,
तुतली बातें करते
तितली बनकर रंग रूप भरने |
माता पिता का गुरूर हूँ,
बेटी होने का गर्व है,
एहसास मुझे भी होता है |
लेकिन हो गया क्या आज?
इस धरा पर बेटा -बेटी में
अंतर करके आगे बढ़ने नहीं देते
सभी |
शहर गाँव में बढ रहे हैं
अबला पर अत्याचार,
प्रभु को भी नहीं है दया |
सोच रही हूँ क्या पाप किया
मैंने इस तरह पीडा सहने |
आज एक होकर लडना
हैं हमें बेटी बचाने |
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