कवि डॉ.राजेश कुमार जैन जी द्वारा रचना “नारी शक्ति"

सादर समीक्षार्थ
विषय  - नारी शक्ति

प्राचीन भारतीय संस्कृति में नारियों को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। वैदिक काल में नारी को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त थे। वह पुरुष की अर्धांगिनी मानी जाती थी। उसके बिना कोई भी यज्ञ संपन्न नहीं हो सकता था। रामचंद्र जी ने जब अश्वमेध यज्ञ किया तब सीता जी की अनुपस्थिति में उन्होंने सीता जी की स्वर्ण प्रतिमा यज्ञ स्थल पर रखवा कर यज्ञ में पूर्णाहुति प्रदान की थी।
   मनु ने स्त्री को घर की लक्ष्मी माना है। उनका कथन है कि जिस घर में स्त्री की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। उन्होंने कहा है- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमंते देवता।
   प्राचीन काल में नारी केवल घर की मालकिन और रसोई संभालने वाली नहीं थी, बल्कि वह धर्म, समाज, राजनीति, शिक्षा आदि क्षेत्रों में भी अग्रणी स्थान रखती थी। राधा,गार्गी, अनसूया,सीता, मदालसा,अपाला, मैत्रेयी,सावित्री,अश्वघोषा, आदि अनेक नारियाँ अपनी विद्वता के कारण आज भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। राज काज में राजा के साथ रानियाँ भी रुचि लेती थी। रानियों को अपना वर स्वयँ चुनने का अधिकार था। स्वयंवर परंपरा इसका स्पष्ट प्रमाण है ।
नारी की अधोगति -        भारत में आक्रमणकारियों के आने के साथ-साथ नारी कापतन प्रारंभ हुआ। विलासी बादशाहों की कुदृष्टि से बचने के लिए नारी को घर की चाहर दीवारी में बंद किया जाने लगा। उसकी सामाजिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगने लगा। परिणाम स्वरुप बेटी बहू, पत्नी, या माँ बनकर नारी पुरुष की आश्रिता बनकर रह गई। शिक्षा के अभाव में उसका चहुँमुखी विकास रुक गया। वह केवल श्रृंगार में लीन रहने लगी। और धीरे- धीरे उसको घर की भाग्य दासी बना लिया गया।यह नारी समाज पर कलंक था। बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, विधवा दहन प्रथाएं इसी समय की देन है।
 नारी जागरण का प्रयत्न- पश्चिमी सभ्यता तथा आधुनिक शिक्षा के संपर्क में आने से भारत वर्ष को नई दृष्टि मिली। अंग्रेज नारियों की स्वच्छंदता को भारतीय नारी ने भी निहारा। उधर स्वामी दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय, विवेकानंद आदि महापुरुषों ने नारी शिक्षा पर बल दिया। उन्होंने बाल विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा आदि का घोर विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया। फलस्वरूप नारी समाज में अपने उत्थान की चिंगारी भड़की और समाज में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आने लगा। स्वतंत्रता संग्राम में नारियों ने अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।गाँधी जी के आह्वान पर असंख्य नारियाँ चौका- चूल्हा छोड़कर स्त्री सेना में शामिल हुई। सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी, सुचेता कृपलानी आदि नारियों ने राष्ट्रीय राजनीति में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इससे सुप्त नारी शक्ति में जागृति आ गई और वे पुरुष की दासी बनना छोड़कर उसकी सहयोगी बनने की दिशा में अग्रसर होने लगी।
    वर्तमान काल में नारी की जीवन के सभी क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका बनने लगी है।अब वह अबला नहीं रह गई। इंदिरा गाँधी के शासन काल ने सिद्ध कर दिया कि वह राजनीति में भी पुरुषों पर हावी हो सकती है । आज स्कूल कॉलेज शिक्षा, पुलिस, चिकित्सा, वकालत, व्यापार आदि सभी क्षेत्रों में नारियों ने अपना अद्भुत नाम रोशन किया है। वह पुरुष की अपेक्षा अधिक योग्य और कुशल कर्मचारी हैं। सच तो यह है कि जीवन के अनेक क्षेत्रों में आने से नारी का रूप और अधिक संतुलित और गरिमा मयी बना है। उसमें दया, ममता, करुणा, वात्सल्य आदि कोमल गुण पहले की भाँति विद्यमान हैं और नई रोशनी के कारण विवेक, स्वाभिमान, आत्म सम्मान आदि गुणों का समावेश हो गया है। जो नारी पहले घर के प्राणियों को ही अमृत का पान कराया करती थी अब वह मानो सारे जगत का आह्वान करती हुई कहती है -

 दया माया ममता लो आज
    मधुरिमा लो अगाध विश्वास 
    हमारा हृदय रत्न निधि स्वच्छ
       तुम्हारे लिए खुला है पास

 नई चेतना के फल स्वरुप कुछ भारतीय नारियों ने स्वच्छंदता और फैशन परस्ती को ही अपना जीवन धर्म बना लिया है वह घर गृहस्थी को बोझ समझती है, इसलिए माँ बनने में भी संकोच करती हैं। वह क्लबों में पश्चिमी धुनों पर थिरकते रखने में ही आधुनिकता मानती हैं, परंतु नारी का यह तितली रूप कभी वरेण्य नहीं हो सकता। स्वयँ नारी ने इस तथ्य को जान लिया है। अब भी वह आत्मत्याग का परिचय देती हुई घर और बाहर के मध्य संतुलन बनाकर चलती है। प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद जी ने नारी के विषय में लिखा है-

 नारी तुम केवल श्रद्धा हो
 विश्वास रजत नग पद तल में
 पीयूष स्रोत सी बहा करो
 जीवन के सुंदर समतल में


 डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल
 उत्तराखंड

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