स्वरचित रचनास्वेता कुमारीधुर्वा, रांची झारखंड।

वक़्त की अदला बदली
वक़्त - वक़्त की बात है,
कभी खुशी है तो कभी गम है।
एक दौर वो भी था,जिसमे हमने जन्म लिया था।
एक दौर ये भी है,जिसमे हमारे अंश ने जन्म लिया है।
वक़्त - वक़्त की बात है।।


उस वक़्त माँ सबकी होती थी,
बच्चे लड़ते थे ये कहकर की माँ मेरी है ।
अब वक्त बदल गया है,
बच्चे लड़ते हैं ये कहकर की माँ तेरी है।
वक़्त - वक़्त की बात है।।


उस वक़्त हम सब पतंग उड़ाते थे,
सबका मन बहलाते,फुसलाते थे।
अब वक्त बदल गया है,
अब रिमोट से खिलौना उड़ाते हैं।
इसी को लोग नया दौर कहते हैं।
यही वक़्त -वक़्त की बात है।।


उस वक़्त हम सब बाहर खेलने जाते थे,
मम्मी पापा मारते हुए वापस घर लाते थे।
अब वक्त बदल गया है,
अब बच्चे घर मे ही रहते हैं,
मोबाइल,कंप्यूटर पर व्यस्त रहते हैं।
इसी को लोग नया दौर कहते हैं।
यही वक़्त वक़्त की बात है।।


उस वक़्त लोग दूसरे की जान बचाने के लिए खुद को तैयार रखते थे,
उसके खातिर खुद भी कुएं में कूद जाते थे।
अब वक्त बदल गया है,
लोग दूसरे को बचाने से डरते हैं,
उसका फ़ोटो लेते हैं,फिर मज़े से न्यूज़ पढ़ते हैं।
इसी को लोग नया दौर कहते हैं।
 यही वक़्त वक़्त की बात है।।


उस वक़्त घर में एक फोन होता था,
अगल बगल सबके फोन आते थे।
सब खूब एक साथ बातें करते थे,
अब वक्त बदल गया है,
सबके हाथ में एक एक फ़ोन  है।
रिश्ते ऑनलाइन और जज्बात ऑफलाइन हो गये हैं।
इसी को लोग नया दौर कहते हैं।
यही वक़्त वक़्त की बात है।।

स्वरचित रचना
स्वेता कुमारी
धुर्वा, रांची 
झारखंड।

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