कवयित्री पूजा परमार सिसोदिया जी द्वारा रचना “ये सफर"

बदलाव मंच को नमन
दिनांक_ 18/10/20
दिन_ रविवार
साप्ताहिक प्रतियोगिता नारी शक्ति पर विषय

ये सफर

हाँ ये सफर मैं तन्हा है तय कर लूंगी
कैसे भी खुशियों से अपना आंचल भर लूंगी l
तू मान ना मान ये अंखियां बहेंगी नहीं अब
इनमे गहरे काजल की धार रख लूंगी ।
हाँ ये सफर में तन्हा ही तय कर लूंगी ।।

तो क्या हुआ एक वक़्त टूट गई थी मैं
तो क्या हुआ एक वक़्त खुद से ही रूठ गई थी मैं ।
उधड़ गई थी ज़िन्दगी से जो भी उम्मीद
उस उम्मीद को थोड़ा रफू कर लूंगी ।
हाँ ये सफर मैं तन्हा ही तय कर लूंगी ।।

मुझे है यकीन वो मंजर भी आयेगा 
खुद में उड़ाने मुझे अम्बर भी आयेगा ।
उडूंगी जब मुट्ठी में कसके
कायनात की सारी खुशियां भर लूंगी ।
हाँ ये सफर मैं तन्हा ही तय कर लूंगी 
कैसे भी खुशियों से अपना आंँचल भर लूंगी ।।

पूजा परमार सिसोदिया
आगरा ( उत्तर प्रदेश)
pujaparmar89@gmail.com

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