कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा रचना ”मा की महिमा अपरंपार"

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माँ की महिमा अपरंपार

जय हो मईया सिंहवाहिनी,
खड्ग,कटार,त्रिशूलधारिणी।
तुझको पुकारे दुख में संसार,
 माँ की महिमा अपरम्पार।
तू देवमाता जग की विपतिहारिणी,
माँ अम्बे दस-दस भुजाओंवाली।
तू स्कन्द माता शैलपुत्री दक्षयज्ञविनाशिनी,
तू महागौरी दक्षकन्या,ब्रह्मचारिणी,
 नव -नव रूपोवाली सिंह सवार।
मइया तेरी महिमा अपरंपार,
महिषासुर मर्दिनि रौन्द्ररूप धारिणी।
तू अपर्णा नेकवर्णा सुरसुंदरी ,
मईया की लाल चुनरियां मनोहारिणी।
हर ले तू पीड़ा मैया करदे बेड़ा पार,
अम्बे जगदम्बे तेरी महिमा अपरंपार।
तू वनदुर्गा मातंगी महाकाली रोन्द्ररूपिणी,
 मधुकैटभहन्त्री तू चंडमुंड विनाशिनी।
तूने किया मइया रक्तबीज का संहार,
मेरे भी हर लो दुख माँ आई तेरे द्वार।
तू ही माँ कालरात्रि शुम्भनिशुम्भ मर्दिनि,
 सर्वशास्त्रमयी मइया सर्वदानव घातिनी।
 ऊँचे पहाड़ निवासिनी तू विंध्यवासिनी,
 नैनो से बहते मइया अविरल अश्रुधार।
  दे दे ! तू दर्शन मइया मैं आई तेरे द्वार,
  तू कृपानिधान तेरी महिमा अपरंपार।
  तू तो जगतारिणी, सबकी विपत्तिनिवारिणी,
  चक्षु खोल मइया देख विपत्ति में सारा संसार।
  दुनियाँ के असुरों का कर दे तू संहार,
  अम्बे जगदम्बे काली आयो नवरात्रि त्योहार।
  आजा मइया तुझको पुकारे सारा संसार,
   लेके त्रिशूल कटार होकर सिंह पर सवार।
   पापियों का पाप बढ़ा है तू कर दे संहार,
   रक्षा करो माँ तेरी महिमा अपरंपार।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय
बलिया:-उत्तर प्रदेश

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