शीर्षक - *कश्मीर*
कश्मीर है श्रृंगार हमारा
शिखा श्रंग श्रीनगर हमारा
भारत मां का मुकुट है प्यारा
अमरनाथ का वरद है न्यारा
हम सब का है स्वर्ग यहां
मां वैष्णो का है धाम यहां
पोरुष का पुरुषार्थ यहां
चाणक्य का है ज्ञान यहां
सूर्य शशि की कोमल ऊष्मा
धवल वर्फ की शोभित सुषमा
झेलम चिनाव की महिमा
कुसुम केशर की है ऊष्मा
खेल खेलती अणिमा गरिमा
शक्ति शची अरू उमा रमा
दैविक अद्भुत अदम्य क्षमा
सौंदर्य सदा ही जिसकी उपमा
पर अभी !
कल कल स्वर में उन्माद भरा
हाहाकार मचा अंधकार भरा
निर्मल मनों में जहर भरा
कुछ में देश द्रोह का दंभ भरा
नापाकों में षणयंत्र भरा
निर्धन को धन लोभ भरा
जेहाद धर्म आतंक भरा
सपना जन्नत हूर भरा
अब शीघ्र !
निर्गत उसको करना होगा
जेहाद समूल दफनाना होगा
थोड़ा भूगोल बदलना होगा
समान सिविल कोड अब लाना होगा
धारा 370 तो काल कवलित हो गई
वीर सपूतों को वहां बसाना होगा
पाक को सबक सिखाना होगा
युद्ध अभी अंतिम करना होगा
भारत माता की जय
🌹 वन्दे मातरम् 🌹
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित अप्रसारित है
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