बदलाव मंच को सादर प्रणाम
दिनांक 19 10 20
दिन सोमवार
शीर्षक -- मैं जग की कल्याणी
मैं नारी, मैं शक्ति स्वरूपा,
मैं जग की कल्याणी.।
जग परिवर्तन मांग रहा,
मैं दोहराउँ गौरव वाणी।।
कौशल्या वन राम जन्म दूँ,
बन जीजाबाई वीर शिवा।
शकुंतला बन भरत जन्म दूँ
बन सूनयना सौभाग्य सिया।
सुमाता बन रच सकती मैं ,
नूतन युग निर्माणी ।
मैं नारी मैं शक्ति स्वरूपा,
मैं जग की कल्याणी।
घर कुटुंब और देश की दुर्गति,
मुझ को निहार रही है।
सेवा भाव, स्नेह की खातिर,
मुझे वह पुकार रही है।
अहिल्याबाई बन मुझको है, आत्मशक्ति दिखलानी।
मैं नारी, मै शक्ति स्वरूपा,
मैं जग की कल्याणी।
निरंकुश हो रहे मनुज से,
मानवता है ऊबा।
और देश का कोना कोना,
आकुल व्यथा में डूबा।
अनुशासित और सभ्य पीढ़ियों की
मुझे करनी है तैयारी।
मैं नारी मै शक्ति स्वरूपा,
मैं जग की कल्याणी।
आंसू पी मुस्कान बिखेरू,
अपमानित जख्मों से।
कभी सहचरी कभी अनुचरी,
आत्म- समर्पित तन से।
सावित्री बन सत्यवान को,
यम बंध से मुक्ति दिलानी,
मैं नारी मै शक्ति स्वरूपा,
मैं जग की कल्याणी,
जग परिवर्तन मांग रहा,
मै दोहराऊ गौरव वाणी।।
धन्यवाद
सुधा तिवारी
राघव नगर
0 टिप्पणियाँ