कवयित्री स्मिता पाल जी द्वारा 'ज़िद्दी हूंँ बस इतना जान लो मुझे' विषय पर रचना

मांँ शारदे को नमन, मंच के गुणी जनो को नमन



झल्ली बोलो पगली कहो,
या बदतमीज पुकार लो मुझे,
ज़िद्दी हूं बस इतना जान लो मुझे।

हार नहीं मानूंगी,
चाहें कितनी ही बेड़ियों से जकड़ दो मुझे,
पंछी हूं उड़ान तो भरूंगी ही,
चाहे कितने ही पंख काट दो मेरे।

रूढ़िवादिता की जंजीरों को तोड़ कर,
पितृसत्तात्मकता की कड़ी को झिंझोड़ कर,
आगे बढ़ुंगी बड़ कर ही रहूंगी,
चाहें कितना भी रोक लो मुझे।

जब-जब रोकने की कोशिश भी होगी,
अपनी ही करनी तुम पर भारी होगी,
बेफिक्र हूं, बेखौफ हू,
बस इतना जान लो मुझे।

बाजू का बल मुझे ना दिखाना,
कालरात्रि हूं इतना जान लेना।
छल का प्रयोग कभी न करना,
महामाया की रूप हूं समझ लेना।

परवाह नहीं समाज की,
घिनौने चिंतन से मैं परी हूं,
सौंदर्य हूं, आदिशक्ति हूं,
सौम्यता से बनी जगत जननी हूं।

*ज़िद्दी हूं बस इतना जान लो मुझे।।*


 *स्मिता पाल (साईं स्मिता), झारखंड*

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ