अनाचार#शशिलता पाण्डेय जी द्वारा

अनाचार
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 एक तरफ कानो में,
 सुनाई देता!
 बेटी दिवस की,
 बधाई का शोर !
अन्तरात्मा फिर दहल,
 उठी वेदना से!
 सुनकर हदयविदारक चीत्कार,
फिर किसी नराधम ,
नरपशु ने किया !
अस्मत किसी मासूम का,
 फिर से तार-तार!
 क्या हो रहा,
 वीरांगनाओं के इस देश मे?
 मानवता होती रहती,
 शर्मसार बार-बार !
 जहाँ दुर्गा पैदा हुई थी,
 लक्ष्मीबाई के वेश में!
 क्यों बेटी! इतनी,
 विवश और लाचार?
 देश के प्रशासन का,
 रहा नही विश्वाश !
जाने कितने रक्तबीज,
 पैदा होंगे बार-बार?
घिनौना पाश्विकता का,
 बीभत्स देखकर रूप!
स्तब्ध पूरा देश नराधम,
 दुशासन का अनाचार!
हे माँ दुर्गा! लेकर,
 चंडिका का रौंद- रूप!
 कब  महिषासुरो का,
 करोगी संहार।
स्त्रीत्व की वेदना को,
 कब तक सहेगी बेटियां!
होती रहेगी कबतक इन ,
भेड़ियों का शिकार !
घात में छुपा नराधम नरपशु,
मरी आत्मा को भी,
 मारे बार-बार!
 जबान काटकर,
 बनाया बेजुबान!
तड़पती आत्मा की चीत्कार!
वेदना कितनी मचाती होगी,
 दिल मे हाहाकार!
जब तड़पेंगे नर-पिशाच,
 आत्मा तृप्त होगी मुक्त होकर !
 फांसी पर लटकेंगे फिर से,
 जब वे भस्मासुर!
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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