कवयित्री कल्पना गुप्ता जी द्वारा 'पैगाम' विषय पर रचना

पैगाम 

अरी चलती हवाओं
रुको, मेरा पैगाम
लेती जाओ, कहना
मेरे दिल को, मुझे भी
अपने संग ले जाओ।

अब तो हैं झोली मेरी खाली
यह दिल भी तेरा देह भी तेरी
करूं अब किसकी रखवाली
मुझे अपने पास बुलाओ।

दिल उनकी याद से भरा
खोया तुझमें जर्रा जर्रा
मन रहता मीठी दर्द से भरा
इस दर्द से मुझे बचाओ।

जिस्म मेरा है तेरी कैद में
खोया रहता तेरी याद में
जिंदगी गुजरी तेरे अनुवाद में
क्या है हुआ, कुछ तो समझाओ।

लिपटा है मुझसे तेरा साया
जकड़ी है मुझसे जैसे कोई छाया
तेरे  इश्क  संग  घर  बनाया
आओ, इस  घरौंदें  को सजाओ।

कल्पना गुप्ता/ रत्न

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