कवि निर्मल जैन 'नीर' जी द्वारा 'लाज' विषय पर रचना

लाज/शरम....
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छुपा के राज~
करते वो गुनाह
आती न लाज
कैसी है पीढ़ी~
खो कर शर्म हया
चढ़ती  सीढ़ी
भूले संस्कार~
फिर से छल गया
तुम्हारा प्यार
खोटे करम~
आँखों में नही रही
थोड़ी शरम
शर्म गहना~
बड़े बुजुर्गो का है
यही कहना
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      निर्मल जैन 'नीर'
    ऋषभदेव/उदयपुर

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