कवि अजित कुमार जी द्वारा 'असली कमाई' विषय पर रचना

मंच को नमन 

असली कमाई
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तुम कमाये बहुत पर बचा कुछ नहीं,
हम गँवाये बहुत पर गया कुछ नहीं।

तुम दिखावे में सब कुछ लुटाते गये,
हम अभावों में सब कुछ बचाते गये।
तुम जिसकी धज्जियां उड़ाते गये,
हम उसी को गले से लगाते गये।
तुम कमाये.............

तुम तो माया की नगरी में उड़ते रहे,
हम हकीकत की नगरी से जुड़ते रहे।
तुम हकीकत से नजरें चुराते रहे,
हम हकीकत से नजरें लड़ाते रहे।
तुम कमाये.............

तुम कमाने में सबसे पिछड़ते गये,
साथ रहकर भी सबसे बिछड़ते गये।
शान-शौकत रईसी का आता रहा,
मगर बदले में संस्कार जाता रहा।
तुम कमाये.............

तुम तो असली कमाई कमाते नहीं,
जरूरतमंदों को तुम काम आते नहीं।
हम किसी को कभी दिल दुखाते नहीं,
दीन-दुखियों को स्वार्थ में रुलाते नहीं।
तुम कमाये.............

अजीत कुमार
गुरारू, गया, बिहार

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