कवि भास्कर सिंह माणिक कोंच जी द्वारा रचना “मैं आईना हूंँ"

मंच को नमन
दिनांक- 13 अक्टूबर 2020
विषय -आइना
          मैं आईना हूंँ
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मैं जो कहूंगा
सच ही कहूंगा
तुम्हारे छुपाने से
लाख कोशिश करने से
नहीं छुप सकते
हमारे सम्मुख
दाग
क्योंकि
मैं आईना हूंँ

मैं नहीं बन सकता आदमी
मेरी प्रवृत्ति नहीं है दानवी
मैं नहीं बहा सकता खून
मैं नहीं छीन सकता
अधिकार अपनों का
क्योंकि
मैं आईना हूंँ

मैं हर उम्र का
मैं हर दर्द का
बनता हूं सहारा
मैं नहीं करता
बार पीठ पर
हर बात कहता हूंँ मुंँह पर
मैं नहीं करता गद्दारी
क्योंकि
मैं आईना हूंँ

कर देना मेरे
टुकड़े टुकड़े
कहेगा मेरा किरका किरका
सच ही
क्योंकि
मैं आईना हूंँ
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मैं घोषणा करता हूंँ कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
           भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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