कवि मोहमद मुमताज़ हसन जी द्वारा रचना “ग़ज़ल”

*ग़ज़ल*


आबरू लूट रही सरे- बाजार,जमाना खराब है,
सारे रिश्ते हो रहे  तार- तार जमाना खराब है!

माँ ख़ौफ़ में है जन्म बेटी को देकर,
आय दिन होते हैं अत्याचार जमाना खराब है!

घूमते सरेआम हवस के लुटेरे लेकिन,
गूंगी- बहरी यहां की सरकार जमाना खराब है!

दौरे- क़यामत है ये संभलकर चलना,
खुद ही बनना होगा चौकीदार जमाना खराब है!!

-मोहम्मद मुमताज़ हसन
  टिकारी, गया, बिहार

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