कवि सुनील दत्त मिश्रा जी द्वारा रचना “काश सभी नेता कलाम जी जैसे हो जाए।

नमन सौ बार नमन

काश सभी नेता कलाम जी जैसे हो जाएं।
सभी के दिल में उनके प्रति इज्जत हो ,और वह काबिले सलाम हो जाए।
एक छोटा सा रूम निकला था
चंद कुछ सूट पास में निकले।
थोड़े से पैसे पास में उनके
जो उनकी पासबुक में निकले।
बहुत थोड़े से  खाने के बर्तन
भारत के पूर्व राष्ट्रपति के कमरे से निकले।
कहीं कोई जायजाद  नहीं भूमि के टुकड़े भी नहीं निकले ।
स्विस बैंक में कोई बैलेंस नहीं था इनके पास ।
केबल बालों में  कुछ लटे निकली।
गए जब प्रभु द्वार स्वामी जीनहीं कोई  भी झंझटे निकली।
गए तो ऐसे गए जैसे खिचड़ी 
मैं घी था ।
देते देते भाषण व महाप्रयाण को निकले।
बचपन रामेश्वर मंदिर में कटा।
पुजारी जी की शिक्षा का असर था 
बस इसी ही बात से वो सबका था
बेटा भारत मां का वो नुरेनजर था
बहुत ही बात निराली अनोखी
थे तुम मुस्लिम मगर दिल से वो काफिर निकले।
सौ सौ बार नमन को दिल चाहता है
भारत के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी हम सब के निकले।
जब भी मैं जन्म लूं कलाम बनू
दुनिया के लिए मैं सलाम बनूँ
दुबारा मुझ को जन्म देना भगवन मैं ही अबुल कलाम बनूँ

 -सुनील दत्त मिश्रा

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