खोजी मन#शशिलता पाण्डेय जी द्वारा खूबसूरत रचना#

खोजी मन
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मन की दुनियाँ,
 बड़ी विकल।
रोज आज में ,
खोजे कल।
महत्वाकांक्षी होता,
 मानव का मन।
नही संतुष्ट पाकर,
 मुक्त वायु,जल।
आवश्यकताएँ उनकी,
 बढ़ती दिनोदिन।
 आवश्यकतानुसार मानव,
 करता खोज।
 नए-नए अविष्कार,
 अब करता रोज,
  बड़ा अद्भुत है,
 मानव मन का राज।
 पहनता हरदम,
 उत्कृष्ट प्राणी का ताज।
दिन तो प्रकाशित,
 करता सूरज।
रात भी जगमगाती,
 प्रकाश से रोज।
खोजी मन धरती से,
पहुँचा गगन पर आज।
ऊँचे गगन पर उड़ता मानव,
 बैठकर हवाई जहाज।
नही दूर अब चंदामामा,
 वहाँ  बनेगा घर कल या आज।
पंखे बिजली, कूलर इन्वर्टर,
हर समस्या का हल आज।
मेहनत मशक्कत दूर हुई,
हम हुए नए अविष्कारों के मोहताज।
हर  समस्या को सुलभ बनाये,
नही दुनियाँ मोबाइल बिना आज।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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