हास्य व्यंग्य कविता
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन है
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मैं हूँ आपके गाँव घर का बेटा,
हूँ मैं आपके बीच का हीं नेता,
जब भी आप सब संकट में होते,
वक्त पर काम मैं हीं आता हूँ।
आपसे मेरा गहरा रिश्ता है,
जो वक्त हाजिर हो जाता हूँ ,
बस वोट देकर जितायें हमें,
आपका गाँव कितना चमकाता हूँ ।
वादा करने में मेरा क्या जाता है,
हमें तो सिर्फ वादा करना आता है,
किसी को घर दे दो, नौकरी दे दो,
मेरे बाप का क्या जाता है।
मेरा थोड़े हीं नेक इरादा है ,
बस यह वादा है चुनावी वादा है,
दशकों से हम यहीं करते आयें हैं,
यहीं कहते आये मेरे बाप दादा हैं।
वादा करना राजनीतिक काम मेरा,
यहीं लोकतंत्र का इनाम है मेरा,
लोकतंत्र में मेरी भी कुछ हस्ती है,
मूर्ख तो बेचारी आवाम है मेरा।
गर हम सब गरीबी मिटायेंगे,
तो वोट मांगने दुबारा किधर जायेंगे,
गर ये जाग जायेगी जनता,
तो फिर हम यहाँ से कहाँ जायेंगे।
किसी ने सच हीं कहा था,
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन है,
जनता को खाली भाषण मिलता ,
नेताओं को मिलता सिंहासन है।
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अरविन्द अकेला
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