घृणा के बीज अब ना यू उगाओ#गरिमा विनित भाटिया जी द्वारा#

*नमन बदलाव मंच* 
 *विषय* --घृणा,हिकारत,नफरत
 *विधा*  -- कविता
 *शीर्षक* ---घृणा के बीज अब ना यू उगाओ
              

यू  तो उर्दू में एक नशा है 
पर हिन्दी में अपना होश है 
कर  दे  जो मदहोश वो उर्दू  है 
हिन्दी में भी महकी सी एक खूशबू  है 
उर्दू में रहमत ए दिलो की दुआ है 
यू हिन्दी ने भी कितने हृदयों को छुआ है 
गर उर्दू लफ़्जो से नज्म बनाती है 
तो हिन्दी भी शब्दो से कविता रचाती है 
यदि उर्दू शायरी की शान है 
तो हिन्दी भी काव्य का मान है 
मत करो तुलना हिन्दी और उर्दू की 
गर उर्दू में  खुदपसन्दी  है 
तो हिन्दी में अपना स्वाभिमान है 
हिन्दी उर्दू कर तुम नफ़रत ना फैलाओ 
घृणा के बीज अब ना यू उगाओ 
एक मुल्क एक जहान एक हिन्दुस्तान बनाओ

 *गरिमा विनित भाटिया* 
 *अमरावती महाराष्ट्र*

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ