कवि राजेश कुमार जैन जी द्वारा रचना “तरंगे"

सादर समीक्षार्थ 
विषय      -       तरंगे 
विधा          -   कविता 



तरंगें मन वश में कर लेती
 कहाँ कहाँ की सैर कराती
 कभी नभ पर  हैं ले जाती
 पर्वत सागर सभी दिखाती..।।

 इतराती इठलाती फिरती
अभी वहाँ थी, अब यहाँ हैं
चपल चाल सी चंचल रहती
तन मन हैं तरंगित कर देती..।।

 पल में तोला, पल में माशा
अद्भुत सा ये खेल कराती
संग अपने ये बहा ले जाती
सबके मन को हैं हर्षाती..।।

 तरंगे जीवन आनंदित करती
 कभी हँसाती, कभी रुलाती
 कभी पीड़ा ये,सारी हर लेती
 प्रतिपल नया, एहसास कराती..।।

 तरंगे कितनी अनुपम हैं होती
 जीवन सारा संचालित करती..।।


 डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल 
उत्तराखंड

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