*नारी तुम क्यों हिम्मत हारी*
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*नारी तुम क्यों हिम्मत हारी, दोधारी तलवार बनों।*
*काल रूप काली चंडी बन, उनके शीश उतार रखो।।*
*'पी.के.' छूते ही मिलें ख़ाक में, ऐसे तुम अंगार बनो।।*
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*आग बनों, शोला बन जाओ, जिंदा एक मिसाल बनों।*
*नही जरूरत दूजों की खुद के लिए, खुद ही ढाल बनों।।*
*काली बन महाकाल रूप धर, पापी को संहारो तुम,*
*जो अस्मिता पे हाथ उठाए, भस्म हो ऐसी ज्वाल बनों।।*
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आशुकवि प्रशान्त कुमार"पी.के."
पाली हरदोई (उत्तर प्रदेश)
8948892433
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