*नमन बदलाव मंच*
*"कैसे कह जाते हो अकेले हो"?*
हूँ हर रोज ,हर घड़ी ,
बातें छोटी हों या बड़ी
हर दम हर लम्हा ,
संग आपके किस्सॊ में ,
एहसासों के हिस्सॊ में
सपनों में ,हकीकतो में ,
दूनिया के सच्चे रिश्तों में ,
हो हर पल अच्छे बुरे वक्तो में
"कैसे कह जाते हो अकेले हो"?
यू बसे हो ,मेरे दिन की आहटो में ,
रहते हो रात की गिरावटॊ में
"कैसे कह जाते हो अकेले हो"?
ख्यालो में तो प्यार दिखाते हो ,
हकीकतो में रुठे से रहते हो!
"कैसे कह जाते हो अकेले हो"?
आप मेरे रिश्तॊ में पहले हो।
हो मेरे आँखो के, आशियाने
वाले मेरे सूकुन
सारी हदों के जिद्दी से जुनून,
"कैसे कह जाते हो अकेले हो"?
मेरे बदले हुए अंदाज हो ,
मेरे लिए तो मेरे आज हो ,
क्यूंकि कल कभी आता नहीं
बहलाना मैंने सीखा नहीं
यूं ना कहो अकेले हो
रहते हो फिक्र मे,
ठहर जाते हो जिक्र मे
"फिर भी कहते हो अकेले हो "
ना समझो शब्दों में फँसा रही
ना बहला के हँसा रही
लफ्जो में कभी ना हो पाओगे वया
मुस्कुरा के सोचो आज कुछ नया
"कैसे कह जाते हो अकेले हो"?
आप मेरे कल के आज ,
और आज के सवेरे हो ।
"कैसे कह जाते हो अकेले हो"?
*गरिमा विनित भाटिया*
*अमरावती महाराष्ट्र*
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